Dr. Neelam

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उम्र की दौड़

*उम्र की दौड़*

पुकारता रहा वक्त
 मगर उम्र
दौड़ती रही
जिंदगी की अंधी
गलियों में
बेतहाशा भटकती
रही
बहुत गुमान रहा
जिस्त पर अपने
जमीं पर रहकर भी
आसमां पर चलती रही।

तीन पहर उम्र के
भीड़ साथ थी बहुत
रास्तों से बातें भी
करते रहे कई
फूल मिले उठा कर
सीने से लगा लिये
खार सारे दफ्न
कब्र ए सीने में
कर दिये

मौसमों के साथ
हर पहर बदलते रहे
रिश्ते सभी
चंद जिस्त का
दामन पकड़े 
तीन पहर तक 
साथ चलते भी रहे

मगर फूल सारे
सूख के बिखर के
क्या गिरे
शूल सीने के भीतर
से उभर आए
सभी
वक्त ने तो हर कदम
समझाया ही था
मगर उम्र हठीली
कब सुना करती थी
वक्त से आगे
दौड़ती ही रही।

दौड़ते-दौड़ते
उम्र बढ़ तो गई
मगर जोश पाँव के
शिथिल कर गयी
कमर ने अकड़ना
छोड़ दिया
सरतान निगाहें कभी
आसमां पर
लगी रहतीं थीं
आज झुके सर के
साथ जमीं
टटोल खोए पल 
ढूंढती हैं।

सौपान उम्र के 
तीन चढ़े 
भाईयों संग
धर्मराज की तरह
आखिरी सीढ़ी पर
अकेले ही 
चलना होता है
जिन अंगों पर गुमान
था कभी
उनका मोह तो
रहता है 
मगर वे भी साथ
छोड़ जाते हैं।

       डा.नीलम

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6 Comments

नंदिता राय

22-Feb-2024 12:17 AM

Nice

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Gunjan Kamal

20-Feb-2024 03:11 PM

👌🏻👏🏻

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Mohammed urooj khan

19-Feb-2024 01:10 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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